SPIRITUAL
धर्म की जय हो ।।श्री हरिः।। प्रणियों में सद्भावना हो
अधर्म का नाश हो ।। हर हर महादेव ।। विश्व का कल्याण हो,
गोहत्या बंद हों ।। गोमाता की जय हो ।। भारत की जय हो !
श्री शंकराचार्य भगवान की जय हो !
सर्वभूतहदय धर्मसम्राट् श्रीस्वामी परमाध्यक्ष- कारपात्रीजी महाराज की जय हो !
परमाध्यक्ष -श्रीहनुमानजी महाराज,
स्थापित- शारदीय नवरात्र 1988 (ईस्वीच सं0) को पराम्बा की उपासना के क्रम में अवैदिक – अशास्त्रिय आचार-विचारों के समाधानार्थ
श्री शक्तिपीठ संस्थानम् का स्मृति-पत्र –
संस्था का नाम- श्री सनातन शक्तिपीठ संस्थानम होगा।
निबंधित कार्यालय- इस संस्था का निबंधित कार्यालय फ्रेण्डस् कॉलोनी, कतिरा, आरा (बिहार) में रहेगा।
स्थान परिववर्तन की सूचना संबंधित कार्यालय एवं पदाधिकारियों को 15 दिन पूर्व दे दी जाऐगी।
कार्यक्षेत्र- इस संस्था का कार्यक्षेत्र संपूर्ण भारतवर्ष होगा।
उद्देश्य- इस संस्था के निम्नलिखित मुख्य उद्देश्य होंगे।
1. दैनिक सप्ताहिक, मासिक, वार्षिक सत्सगों का स्थान-स्थान पर आयोजन कर समाज में शांति सुव्यवस्था को प्रोत्सिहित करना।
2. विभिन्न सात्विक-शास्त्रियों यज्ञों अनुष्ठानों का आयोजन कर समाज में सदाचरण एवं एकता को बढ़ावा देना। आध्यात्मिक, कार्याकलापों, शिविरों, कुंभ मेला प्रयाग मेला तथा सम्मेलनों के आयोजन एवं श्रीमद्भागवत, श्रीमद्रामायण, श्रीरामचरित मानस कथा-यज्ञो तथा श्रीमद्भागवत गीताऋ उपनिषदादि सद्ग्रथों के प्रवचन से समाज को जागृत-गतिशील और सभी प्रकार के तनावों में एवं हीन भावनाओं से मुक्त करना। इन कार्यक्रमों में समाज की समग्र भागीदारी अथवा सभी वर्गों के सहभाग से एकता, सौहार्द और आनंद को प्रोत्सिहित करना।
3. विभिन्न आध्यात्मिक धार्मिक विषयों की सामाजिक-वैज्ञानिक संदर्भों में व्याख्या प्राप्त करने हेतू गोष्ठी सेमिनार को विद्वत्-सम्मेलनों का आयोजन करना। प्राप्त व्याख्याओं को प्रकाशन कर जन-सामान्य को सुलभ करना।
4. सर्वविध प्रदुषणों को समाप्त करने तथा प्रकृति और पर्यावरण को संतुष्ट और संतुलित रखने के लिए शास्त्रोक्त विधियों का प्रचार करना। देव वृक्षों (तुलसी, आवला, विल्व, आम, हरसिंगार, पीपल आदि।) का समय-समय एवं स्थान-स्थान पर आरोपण करना और कराना। हवन-यज्ञ व अग्नित्रादि द्वारा वातावरण को शुध्द एवं सुवासित करना। समाज में तीव्रता से वर्ध्दमान मानसिक प्रदूषण के विभिन्न रूपों को जो विभिन्न प्रकार के अपराधों के मुख्य कारण हैं। तथा युवा एवं नयी पीढ़ी को हर प्रकार से भ्रष्ट कर समाज एवं राष्ट्र को भारी क्षति पहुंचाने की चेष्ट कर रहे हैं रोकने हेतू सद्ग्रन्थों, देशभक्तिपूर्ण त्याग-तपत्र की भावना से ओत-प्रोत, उच्च उदात्त संस्कारों, विचारों को जगाने वाले साहित्यों का संकलन का सृजन कर समाज में वितरित करना। इन सत्साहित्यों के पठन-पाठन, प्रचार-प्रसार हेतू स्थान-स्थान पर वाचनालयों को संचालन करना।
5. समाज के भीतर तेजी से बढ़ रहें असाध्य रोगों के निवारणार्थ आयुर्वेद एवं अन्य प्रचायीन प्राकृतिक चिकित्सा शास्त्रों के अध्ययन-अध्यापन हेतु औपचारिक-अनौपचारिक शोध-अध्ययन केन्द्रों की स्थापना करना। औषधीय गुणों से युक्त वृक्षों, जड़ियों आदि के लिए उद्यान तैयार करना। कार्यशालाओं के माध्यम से निर्धनों को निः शुल्क स्वास्थय की चिकित्सा सुविधा सेवा सुलभ कराना व्याधि उन्मूलन कार्यक्रम चलाना।
6. तनाव एवं अन्य प्रकार के शरीरिक मानसिक असंतुलन/वैषम्यता अथवा व्याधि के समुचित निवारणार्थ तथा समताज को सशक्त और पुष्ट बनाये रखने के लिए संस्थान की ओर से योग, आसान, व्यायाम एवं प्राणायम की विभिन्न सरल पध्दतियों को जन समान्य के परिचय में लाने और इनके अभ्यासार्थी योग प्रशिक्षण केन्द्रों की संचालन करना।
7. पूर्व (भारतीय) और पाश्चात्य (विदेशी) दर्शनों के तुलनात्मक अध्ययन हेतू विभिन्न संगोष्ठियों का आयोजन करना तथा लाभप्रद शिक्षा का प्रचार-प्रसार करना।
8. प्राच्य विद्या, वेर्दांग(शिक्षा कल्प, व्याकरण, निरूक्त, ज्योतिष आदि) एवं भारतीय सनातन दर्शन तथा साहित्य की विभिन्न विधाओं का सम्यक ज्ञान प्राप्त करने-कराने हेतू औपचारिक-अनऔपचारिक शिक्षा केन्द्रों की संचालन करना। संचालन की ओर से इन विषयों का समुचित अध्ययन आधुनिक वैश्विक शिक्षा के परिप्रेक्ष्य में (लोक विज्ञान और तकनीक के साथ) करने-कराने हेतू विद्यालयों, महाविद्यालयों का विश्वविद्या ऋषिकुतम (विश्वविद्यालय) की संचालन करना। प्राच्य विद्या एवं संस्कृति भाषा, दर्शन तथा साहित्य के संरक्षण सम्वर्ध्दन हेतू हर संभव प्रयत्न करना और एतदर्थ सनातन ज्ञान-विज्ञान शोध अध्ययन केन्द्र की संचालन करना।
9. समाज के सभी वर्गों के जिज्ञासु एवं इच्छुक व्यक्तियों को उपधारा(8) के अन्तर्गत शिक्षा केन्द्रों में निः शुल्क शिक्षा तथा उप धारा-5 के अंतर्गत चिकित्सा केन्द्रों में निः शुल्क चिकित्सा और औषधि प्रदान करना। संपूर्ण मानवता को साक्षार शिक्षित, विवेकी और नम्र बनाने के लिए प्रयत्नशील रहना। निर्धन लाचार, वृध्द, बच्चों, महिलाओं, पिछड़े, दलित और शोषित वर्ग-किस्म के लोगों के लिए विशेष रूप से सेवा, शिक्षा एवं चिकित्सा की व्यवस्था करना।
10. समाज में हर प्रकार की प्राकृतिक अथवा कृत्रिक आपदाओं के काल में सेवा भावना की जागृत तथा विभिन्न प्रकार के राहत का सहायता कार्यों को सम्पादित करने हेतू सेवा केन्द्रों की संचालन करना। वर्ष में दो बार गरीबों और को सम्पादित करने हेतु सेवा केन्द्रों की संचालन करना। वर्ष में दो बार गरीबों और अनाथों को वस्त्रादि दान करना। निर्धनों को हर प्रकार की सहायता उपलब्ध कराकर उनके सामाजिक शैक्षिक जीवन का समृध्द करना।
अनाथों बच्चों बूढ़ों की देख-भाल और इनके उचित प्रबंध के लिए अनाथालयों की संचालन करना। विभिन्न स्थानों पर अन्न क्षेत्रों की संचालन कर भोजन वस्त्रादि वितरण करना। वंचितों उपेक्षितों पर विशेष ध्यान देना।
11. राष्ट्र तथा समाज में सात्विक पौष्टिकता की अभिवृध्दि, पर्यावरण संतुलन तथा कृषि-वाणिज्य की प्रगति में आर्थिक स्वावलम्बन के लिए युगों से पूज्य गौमाता और गौवंश के संरक्षण पालन हेतु गौशालाओं और पृथक कोष की संचालन करना। हिंसा मुकत समाज बनाने जीवों की रक्षा हेतू संकल्प जगाने और पशु -पक्षियों को स्वास्थ्य रखने हेतू पषु केन्द्रों व चिकित्सालयों की व्यवस्था करना।
12. सतसंग-प्रवचन एवं मेला केन्द्रों के अलावा शहरी-देहाती क्षेत्रों में मठों मंदिरों धर्मशालाओं, कुओं-उद्यानों, गुरूकुलों, आश्रमों का निर्माण / जीर्वोध्दार करना।
13. विभिन्न क्षेत्रों में विकास कर रही प्रतिभाओं को पुरस्कार एवं प्रोत्साहित करने हेतू कार्यक्रम करना। इसके भीतर की व्याप्त प्रतिभा को जागृत और प्रकाशित करने के लिए अवसर निर्माण करना।
14. उद्देश्यों के अनुरूप् एवं सत् साहित्य के सृजन हेतु श्रीसनातन साहित्य करने हेतु कार्यक्रम करना। इसके भीतर की व्याप्त प्रतिभा को जागृत और प्रकाशित करने के लिए अवसर निर्माण करना।
15. कार्यकारिणी के दो तिहाई बहुमत से निर्धारित/ प्रस्तावित अन्य कार्यक्रम करना।
किसी भी प्रकार की सहायता / दान / अनुदान या सदस्यता निम्नलिखित बैंक खाते में जमा कर सूचित कर रसीद प्राप्त की जा सकती हैं।
Bank Name- Punjab National Bank
IFSC Code- PUNB0149400
A/c Name- Shree Sanatan Shaktipith Sansthanam
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