OUR MISSION

इतिहास इस बात का साक्षी हैं कि 50 से 100 वर्षों के अंतराल में संसार के विभिन्न थानों और देशों में उथल-पुथल होती हैं। जिसके फलस्वरूप उन भू-भागों और देशों में महत्वपूर्ण बदल आते हैं, संसार के मानचित्र से कई राज्य लुप्त हो जाते हैं या खंडित हो जाते हैं और कई नये राज्य अस्तित्व में आ जाते हैं। भारत अथवा हिन्दुस्तान में 1947 में एक ऐसा उथल-पुथल हुआ था। गत कुछ समय से भारत के अन्दर और इस के इर्द-गिर्द के देशों में चलने वाले घटना चक्र से लगता हैं कि भारत उसी प्रकार के एक और उथल-पुथल की ओर बढ़ रहा हैं। इस शताब्दी को यह अंतिम वर्ष इस दृष्टि से विशेष महत्व रखता हैं। इसलिए 1999 में होने वाले लोकसभा चुनाव के निर्णायक माना जा रहा हैं। यदि इस चुनाव में राष्ट्रवादी प्रत्याषी अधिक संख्या में जीते और दिल्ली में योग्य और चरित्रवान प्रधानमंत्री वाली राष्ट्रवादी सरकार बन पाई तो आने वाली उथल-पुथल इस देश को पुनः अखंड करने का मार्ग प्रशस्त कर सकता हैं और इस के भविष्य को उज्जवल बना सकता हैं।
अनेक दर्शकों से भारत मे दो विचारधाराओं की टक्कर चल रही हैं। एक विचारधारा वह हैं जो भारत की धरती और इसके यथार्थ के साथ जुड़ी हैं। इस के पुरोधा और महर्षि दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, श्यामा जी कृष्ट वर्मा, लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय, सुभाष चन्द्र बोस, विपिन चंद्रपाल, वीर सावरकर, डॉ. हैडगेवार, सरदार पटेल और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रहे हैं। दूसरी विचारधारा वह हैं जो पाष्चिमी, विशेष रूप से ब्रिटिश संस्कृति, सभ्यता और भाषा से चका-चौध हुए आत्म विश्वास विहीन, आत्मविस्तृम अंग्रेजों के मानस पुत्रों द्वारा अपनाई गई। इस के पक्षधर राजा राम मोहन राय, सर फिरोज शाह महता, दादा भाई नौरोजी और पंडित नेहरू माने जाते हैं। गांधी जी ने जवाहर लाल नेहरू को अपना राजनैतिक उत्तराधिकारी बनाकर इस विचारधारा को न केवल बल प्रदान किया, अपितु इसे स्वतंत्र भारत की सरकारी विचारधरा भी बना दिया। यह अब नेहरूवाद के नाम से जानी जाती हैं।
इस नेहरूवाद से जुड़े दल और तत्व राष्ट्रवादी विचारधारा को अपने लिए सबसे बड़़ा खतरा मानते हैं। वे इसे सम्प्रदायिक और मुस्लिम विरोधी कहते हैं। और अपनी विचारधारा को सेकुलर कहते हैं।दुर्भाग्य से भाजपा जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ जुड़ा होने के कारण राष्ट्रवादी-हिन्दुत्वादी दल माना जाता हैं, भी नेहरूवाद के चक्कर में आ गया हैं। इसके द्वारा बनाये गये नये गठजोड़-नेशनल डेमोक्रेटिक एलांइस में डॉ. मुखर्जी से प्रेरणा लेने वाले राष्ट्रवादी कम और नेहरूवादी अधिक हैं। इसलिए संघ-भाजपा के विचारधारा तत्व किंकर्तव्यविमुढ़ हो रहे हैं। इन हालात में उनके तथा देष के अन्य राष्ट्रवादी चिंतन और कार्यक्रत प्रस्तुत किया जा रहा हैं। ताकि वे और अन्य मतदाता राष्ट्रवादी विचारधारा के आधार पर सभी दलों और उम्मीदवारों का सही मूल्यांकन कर सकें।

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1. राष्ट्र देवो भवः- भारत में रहने वाले सभी लोग जो भारत की धरती और भारत की वेद मुलक संस्कृति के प्रति आस्था रखते हैं एक राष्ट्र के अंग हैं। देश की धरती राष्ट्र का शरीर होती हैं और संस्कृति इस की आत्मा। भारत राष्ट्र एक हैं परन्तु इस में राज्य, जनपद प्रांत अनेक हैं। भारतीय हिन्दु समाज एक हैं, परन्तु इसमें बिरादरियां अथवा जातियां अनेक हैं। धर्म जो भारतीय जीवन का आधार हैं एक हैं पंथ अथवा पूजा विधियां अनेक हैं। अपने पंथ, जाति और क्षेत्र के प्रति लगाव रखना, उसका हित चाहना स्वाभाविक हैं। इस पर आपत्ति नहीं की जा सकती। परन्तु यदि पंथ अथवा मजहब या जाति या क्षेत्र के हित और राष्ट्र के हितों में टकराव की स्थिति पैदा हो तो जो व्यक्ति राष्ट्र के हित को अपनी जाति, बिरादरी, पंथ अथवा सम्प्रादय और क्षेत्र के हितों पर वरीयता देता हैं। वह राष्ट्रवादी कहलाता हैं और जो राष्ट्र के हित की बली चढ़ाकर भी अपने सम्प्रदाय, जाति या क्षेत्र और दल साधना चाहता हैं, उसे साम्प्रादिक या अलगवादी कहा जाता हैं। संसार भर में राष्ट्रवाद की यही परिकल्पना और राष्ट्रवादी होने की यह कसौटी मानी जाती हैं। इस कसौटी पर कसने से स्पष्ट हो जाता हैं कि सेकुलर की दुहाई देने वाले दल मूलतः सम्प्रदायवादी और अलगवादी हैं सम्प्रदायवाद की भावना खत्म करने और सभी को मनसा, वाचा, कर्मणा, राष्ट्रवादी और देश की राजनीती और नीतियों को राष्ट्रवादी दिशा देने के लिए राष्ट्र देवो भवः का मंत्र देश के ग्राम-ग्राम और गली-गली में गूंजना चाहिए।

2. सेकुलरवादः- सेकुलरवाद और सेकुलर राज्य के संसार भर में तीन मूल तकाजे माने जाते हैं। वे हैः-राज्य अपने नागरिकों के बीच पंथ अथवा सम्प्रदाय के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव न करें। सभी नागरिकों पर समान कानून लागू हो। कानून के सामने सभी नागरिक बराबर हों। भारत राज्य इस समय इसमें से एक तकाजे को भी पूरा नहीं कर रहा। भारत के संविधान के अनुच्छेद 29-30 साम्प्रादियक आधार पर नागरिकों में भेदभाव करते हैं। सब नागरिकों के लिए समान, कानून संबंधी संविधान के अनुच्छेद-44 को अभी तक कार्य रूप नहीं दिया गया। फलस्वरूप कानून के सामने सभी नागरिक बराबर नहीं हैं। यह स्थिति बदलने की आवश्यकता हैं। भारतीय हिन्दू संस्कृति का आधार ऋगवेद का मंत्र एक सद, विप्राः बहुनाम वदन्ति है यह सब का भला चाहने वाली मानववादी संस्कृति हैं। इसलिए भारतीय हिन्दू राज्य कभी साम्प्रादायिक अथवा महजबी राज्य नहीं रहा। वर्तमान भारत राज्य को सही अर्थ में सेकुलर राज्य बनाने के लिए इस संस्कृति और इसमें निहित उपर लिखे गये सेकुलरवाद के तीन मूल तकाजों को पूरा करना होगा। इसलिए राष्ट्रवादियों को तथाकथित सेकुलरवादियों के प्रति सुरक्षात्मक रूक अपनाने की बजाय उन पर सीधा प्रहार करना चाहिए।

3. भारतीयकरणः- भारत के सभी लोग विशेष रूप से जिन लोगों की राष्ट्र के प्रति अस्था किसी भी कारण से संदिग्ध हो चुकी है जो अपने सम्प्रादय के हित के लिए देश को तोड़ने और इसमें अशान्ति फैलाने के लिए इस्लामी देशों की शह पर अलगवाद फैला रहे हैं, उनको सही रास्ते पर लाने और राष्ट्रधारा में शामिल करने के लिए उनका भारतीकरण करना आवश्यकता हैं। ऐसा करने के बजाय उनका तुष्टीकरण किया जा रहा हैं। इसका उल्टा प्रभाव पड़ रहा हैं और ऐसे लोग राष्ट्रीयधारा से अधिक दूर होते जा रहे है। इस स्थिति को बदलने के लिए और देश की नितियों और राजनीति को राष्ट्रवादी दिशा देने के लिए सभी राष्ट्रवादी तत्वों-दलों और संगठनों द्वारा भारतीयकरण को एक राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में अपनाना चाहिए।

4. राष्ट्रीय विरासत और अस्मिता की रक्षाः-  राष्ट्रीय विरासत और अस्मिता की रक्षाः- हजारों वर्षों  तक अरब और तुर्क आक्रांताओं ने इस्लाम के नाम पर भारत की संस्कृति और सांस्कृति विरासत को खत्म करने के लिए अत्याचार और तोड़फोड़ की। उन्होंने हजारों मंदिरों, कलाकृतियों, पुस्तकालयों और नगरों को नष्ट किया और उनके स्थानों पर मस्जिदें बनाई। उन्होंने अनेक नगरों के नामों का भी अरबीकरण और इस्लामिकरण किया। वाराणसी का काशी विश्वनाथ मंदिर, मथुरा का श्री कृष्ण जन्मस्थान मंदिर, भारत की सांस्कृतिक विरासत और राष्ट्रीय अस्मिता के प्रतीक हैं। उन्हें तोड़कर उनके उपर बनाये गये मस्जिद नुमा ढांचों को हटाकर उन्हें उनका वास्तिविक स्वरूप देना भारत की राष्ट्रीय अस्मिता और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करना हैं। इसके लिये सभी राष्ट्रवादियों को दृढ़ संकल्प हो कर काम करना चाहिए। इनकी मुक्ति और पुर्ननिर्माण के बिना भारत की स्वतंत्रता अधूरी रहेगी।

5. सुरक्षा नीतिः- देश की धरती और संस्कृति की आन्तरिक और बाहरी खतरों से रक्षा करना राष्ट्रीय सरकार का पहता कर्तव्य नहीं निभा पाई। भारत को बाहर से मुख्यतः पाकिस्तान और चीन से खतरा हैं और अन्दर से उनके एजेंटो से भारत की सुरक्षानीति मुख्यताः पाकिस्तान और चीन को ध्यान में रखकर बनानी चाहिए।  सुरक्षा नीति की सफलता के लिये विदेश नीति का सुरक्षानीति से तालमेल होना अनिवार्य होता हैं। परन्तु गत 50 वर्षों में भारत की विदेशनीति कुछ नेताओं की व्यक्तिगत वाह-वाह के लिये देश के सुरक्षा हितों और सुरक्षा नीति से कटी रही हैं। इसी कारण गत 50 वर्षों में देश पर चार बाहरी आक्रमण हुए हैं और देश की 50 हजार वर्ग मील से अधिक भूमि हमारे हाथ से निकल गई। हाल में भारत भूमि के कारगिल क्षेत्र पर पाकिस्तान का अतिक्रमण पाकिस्तान के साथ गत 10 वर्षों से चलने वाले प्रोक्सी युध्द का ही अंग था।   भारत के सुरक्षा हित मांग करते हैं कि भारत अस्राइल से घनिष्ट साम्रिक संबंध बनाए और अमरीका के साथ संबंध सुधारें। अमरीका और यूरोप के देश भी चीन से घबराने लगे हैं। वह इस्लामाबाद का भी साम्यावाद की तरह का खतरा मानने लगे हैं। इस्लामाबाद स्वतंत्र विचार, लोकतंत्र और मानववाद विरोधी हैं। इस्लामाबाद और इस्लामी आतंकवाद भारत के लिए ही नहीं, अपितु रूस और अमरीका समेत सारे संसार के लिये बड़ा खतरा बन गया हैं। इसलिए इस खतरे से भारत को स्वयं भी सचेत रहना चाहिए और इस का मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी साथी जुटाने चाहिए।पाकिस्तान स्थाई रूप से कायम नहीं रह सकता इसके अंर्तविरोध ही इसे खत्म कर देंगें। परन्तु खत्म होने से पहले यह भारत पर एक निर्णायक युध्द थोपेगा, जिसमें भारत के अन्दर के इसके एजेंट इस की भरपूर सहायता करेंगें। राष्ट्रवादी सरकार को इस निर्णायक युध्द के लिए देश को तैयार करना और इसमें जीतने की रणनीति बनानी होगी। उस निर्णायक युध्द के बाद पाकिस्तान खत्म होगा और भारत के पुनः अखंड होने की प्रक्रिया शुरू होगी।

6. कश्मीर और धारा :- 370 6. कश्मीर और धारा – 370 यह सोचना कि कश्मीर का प्रश्न पाकिस्तान के साथ तनाव का कारण हैं, आत्मवंचना हैं। यह भरत-पाक तनाव का कारण पंडित नेहरू की अदूरदार्षित और शेख अब्दुल्ला की महत्वाकांक्षा कश्मीर घाटी का सुल्तान बनने की थी। इसके लिए एक पाकिस्तान का साथ देने को तैयार था। परन्तु जिन्नाह ने उसे घास नहीं डाली। पंडित नेहरू ने अपनी अंदूरदृष्टि और राष्ट्रवाद पर व्यक्तिवाद को वरिवता देने की अपनी प्रवृति के कारण महाराज हरिसिंह, जिसके द्वारा विलयपत्र पर हस्ताक्षर करने से जम्मू-कश्मीर भारत का संवैधानिक और कानूनी दृष्टि से अभिन्न अंग बना, को रियासत से निकाल दिया और शेख अब्दुल्ला को कश्मीर घाटी के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का भी सुल्तान बना दिया।षेख अब्दुल्ला का गैर-कश्मीरी मुस्लमानों पर कोई प्रभाव नहीं था। इसलिए उसकी, मिलीभगत, बलतिस्तान, मीरपुर तथा मुजफराबाद क्षेत्र को रियासत का अंग बनाये रखने में कोई रूचि नहीं थी। पंडित नेहरू की रूचि केवल कश्मीर घाटी में ही थी। इसलिए उन दोनों ने रियासत के कश्मीर घाटी के अतिरिक्त अन्य बहुल क्षेत्र पाकिस्तान की झोली में डाल दिये। ऐसा कर के उन्होने महाराजा हरीसिंह, भारत की सेनाओं और भारत देश के साथ विश्वघात किया। अब्दुल्ला कश्मीर घाटी पर अपनी पकड़ मजबूत करने के साथ-साथ लद्दाख और जम्मू की घाटी के साथ लगने वाले क्षेत्र का इस्लामीकरण करके विशाल इस्लामी कश्मीर राज्य कायम करना चाहता था। उसका बेटा फारूक अब्दुल्ला भी यही चाहता हैं। इस वस्तु स्थिति को भारत के राजनेता जानते हुये भी जानना नहीं चाहते। वे अपने दलगत हितों के लिये कश्मीर घाटी के हिन्दूओं के साथ-साथ लद्दाख के बौध्दों ओर जम्मू के हिन्दूओं को भी बली का बकरा बना रहे हैं।संवैधानिक और कानूनी दृष्टि से सारी जम्मू-कश्मीर रियासत भारत का अभिन्न अंग हैं, परन्तु इसका जो एक-तिहाई भाग सन् 1949 से पाकिस्तान के अधिकार में हैं। उसे उसने पाकिस्तान के साथ पूरी तरह मिला लिया हैं। इस पाक अधिकृत भाग को युध्द के बिना वापिस नहीं लिया जा सकता। परन्तु उस क्षेत्र में युध्द करना भारत के हित में नहीं क्योंकि वहां की लॉजिस्टिक (समसामरिक) स्थिति पाकिस्तान के अनुकूल हैं। भारत को वहां लड़ना चाहिए जहां लॉजिस्टिक (समसारिक) स्थिति भारत के अनुकूल हो। जो काम भारत कर सकता था और अब भी बिना किसी कठिनाई के कर सकता हैं। वह हैं रियासत के उस भाग को जो भारत के अधिकार में हैं शेष भारत के साथ पूरी तरह मिलाना, इसे भारत के संविधान के अंतर्गत लाना और उस के पुर्नगठन करके लद्दाख, जम्मू और कश्मीर को भारत के अंतर्गत अलग-अलग  स्वायत राज्य बनाना। इस काम में सबसे बड़ी रूकावट भारत के संविधान का अस्थाई अनुच्छेद 370 हैं। जिसे रियासत के भारत में विलय के दो वर्ष बाद अब्दुल्ला के आग्रह पर 1949 में संविधान में जोड़ा गया था। यह अनुच्छेद सेकुलरवाद के भी विरूध्द हैं और मानववाद के भी। यह न भारत के हित में है और न जम्मू कश्मीर के लोगों के हित में। इस अस्थाई अनुच्छेद को बहुत पहले निरस्त कर देना चाहिए था परन्तु ऐसा करने के बजाये इसे ही कश्मीर के भारत में विलय का आधार बताकर महाराज हरीसिंह का ही नहीं अपितु सारे राष्ट्र का अपमान किया जा रहा हैं। कश्मीर समस्या के हल के लिये इसे निरस्त करना पहली आवश्यकता है, अन्यथा कश्मीर घाटी के साथ-साथ लद्दाख और जम्मू का भविष्य भी खतरे में पड़ जायेगा। इसलिये इस अनुच्छेद को निरस्त करना और जम्मू-कश्मीर घाटी राज्य का भौगोलिक आधार पर पुर्नगठन करना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी हैं। रियासत का जो भाग पाकिस्तान के पास हैं उनके भविष्य का फैसला तो पाकिस्ता के साथ भावी निर्णायक युध्द ही करेगा। परन्तु भारत को उस पर कानूनी दावे को दोहराते रहना चाहिए।

7. जनकल्याणवादी अर्थव्यवस्थाः-  भारत की विशिष्ट परिस्थिति और आवश्यकताये भारत की अर्थनीति का आधार होना चाहिए। नेहरू असली भारत से कटा हुआ था। उसने सोवियत रूस की अंध नकल कर के भरत की अर्थव्यवस्था को अयथार्थवादी और जनविरोधी बना दिया। इसके कारण भारत जो आर्थिक दृष्टि से 1947 में जापान के बराबर और चीन से आगे था। गत् 50 वर्षों से लगातार पिछड़ता गया और आज इसकी गणना संसार के निर्धनतम देशों में होती हैं। सोवियत रूस में साम्यवाद के खत्म हो जाने के बाद भारत के नेहरूवादी अमेरिका की अंध नकल करने लगे हैं। वे भारतवादी बनने से अब भी इनकार कर रहे हैं। फलस्वरूप भारत की अर्थव्यवस्था कम्युनिज्म के चंगुल से निकल कर अमरीकी पूजीवाद के षिकंजे में फंसती जा रही हैं। भारत की अर्थव्यवस्था को जनकल्याणवादी बनाने के लिए यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाना होगा। सिकुड़ते संसार में भारत शेष संसार से कट तो नहीं सकता। परन्तु इसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों की गुलामी से बचाना होगा। इसके लिये आवश्यक है कि भारत की अर्थनीति का भी भारतीयकरण अथवा स्वदेषीकरण किया जाये।

8. स्वदेशी:- जिन अर्थों में 1904-5 में बंगाल में और 1920-21 में शेष भारत में स्वदेशी का आंदोलन चला था उन अर्थों में स्वदेशी आंदोलन को भारतीयकरण के साथ जोड़ने की आवश्यकता हैं। इसके लियेआवश्यकता हैं कि भारत आर्थिक क्षेत्र को दो भागों में बांटे। एक भाग जिसके लिये विदेशी निवेश और तकनीकी सहायता आवश्यक हैं, उसे बहुराष्ट्रीय निगमों के लिये खोल दिया जाये। दूसरा भाग छोटे उद्योग, कृषि, व्यापार और श्रम-प्रधान ग्रामीण और घरेलू उद्योग धन्धे हैं। इनको बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दायरों से बाहर रखा जाये।इससे भी अधिक आवश्यकता इस बात की हैं कि भारतीय उपभोक्ताओं, विशेष रूप से गत कुछ वर्षों में धनी बने उच्च-मध्यवर्गीय उपभोक्ताओं की मानसिक दासता दूर करके उनका भारतीकरण किया जाये वे भारत में बनी वस्तुओं को विदेशी माल पर वरीयता दें। जब तक राष्ट्रवाद की भावना कमजोर रहेगी, तब तक न स्वदेश और न स्वदेशी वस्तुओं के प्रति अनुराग पैदा होगा। राष्ट्रवाद और स्वदेशी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। कृषि भारत की अर्थव्यवस्था का आधार हैं। हमारा कृषि उत्पादन गत वर्षों में बढ़ा अवश्य हैं। परन्तु जनसंख्या कृषि और उद्योगों के उत्पादन की अपेक्षा कहीं अधिक तेजी से बढ़ रही हैं। इसलिये अधिक उत्पादन का लाभ जनसाधरण को नहीं मिल रहा। गरीबी दूर करने और अर्थव्यवस्था को सही अर्थों में जनकल्याणवादी बनाने के लिये जनसंख्या की बढ़ोतरी पर अंकुष लगाना आवश्यक हैं।

9. जनसंख्या संबंधी राष्ट्रवादी नीतिः- भारत में जनसंख्या जिन कारणों से बढ़ रही हैं, उन पर गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता हैं। जनसंख्या का बढ़ना गरीबी बढ़ने का करण भी हैं और परिणाम भी। इसलिये देश में गरीबी दूर करने के लिये जनसंख्या पर अंकुश लगाना आवश्यक हैं। अब यह स्पष्ट हो चुका हैं कि मुसलमानों की जनसंख्या अधिक तेजी से बढ़ रही हैं। वास्तव में मुस्लिम मुल्ला और नेता राजनैतिक उदेश्यों से जनसंख्या बढ़ाने को प्रोत्साहन दे रहे हैं। बहु-विवाह और परिवार नियोजन का विरोध इस काम में उनके सहायक सिध्द हो रहे हैं इसलिये विवाह और तलाक के तलाक के मामले में शरीयत के स्थान पर विवाह संबंधी समान कानून लागू करना आर्थिक दृष्टि से भी आवश्यक हैं। तथा उचित सेकुलरवादी जो सब के लिये समान कानून का विरोध करते हैं बहु-विवाह के इस आर्थिक पहलू से जान-बूझ कर आंखें मूंदे हुये हैं।  जनसंख्या बढ़ने का दूसरा बड़ा कारण भारत में पड़ोसी देशों विशेष रूप से बंगलादेश से गैर-कानूनी ढ़ग ये करोड़ो मुस्लमानों की घुसपैठ हैं। पूर्वांचल के राज्यों, पश्चिम बंगाल और महानगरों में अलगवादी हलचलों और अपराधों में वृध्दि का यह एक बड़ा कारण हैं। ये घुसपैठिये भारत के हाथों से काम, मुंह से रोटी और सिर से छत भी छीन रहे हैं। वे देश की गरीबी बढ़ाने का एक बड़ा कारण बन गये हैं। राजनैतिक, आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से इन घुसपैठियों को भारत से निकालना और मुसलमानों में शरीयत कानून का चलन बंद करके उन पर समान कानून लागू करना भारत की राष्ट्रीय आवश्यकता बन गयी हैं। देश के सभी राष्ट्रवादी दलों, संगठनों और तत्वों को इस पर विशेष बल देना चाहिए।

10. भ्रष्टाचारः- भ्रष्टाचार पानी की तरह उपर ये नीचे की आरे आता हैं। भारत में इस समय जीवन के सब पहलुओं में व्याप्त भ्रष्टाचार का मुख्य कारण स्वतंत्र भारत के लोकतांत्रिक राजाओं द्वारा इस मामले में जनता के सामने गलत उदाहरण पेश करना हैं। उनकी सूची में सब से पहला नाम जवाहरलाल नेहरू का आता हैं। कहा जाता कि वे और कुछ भी हो भ्रष्ट नहीं थे। यह सर्वदा गलत हैं। केवल पैसे के रूप में ही घूस लेना ही भ्रष्टाचार नहीं होता। जो व्यक्ति निजी जीवन में भ्रष्टाचारी, व्यभिचारी और शराबी हैं। वह सार्वजनिक जीवन में प्रमाणिक हो ही नहीं सकता। परन्तु पंडित नेहरू और उनके अनुयायियों ने राजनेताओं के व्यक्तिगत जीवन के भ्रष्टाचार पर ध्यान न देने की नीति ने भारत के लगभग सभी राजनेताओं को भ्रष्ट बना दिया हैं। उच्च विचार और सादा तथा सात्विक जीवन की भारतीय परम्परा उनके लिये उपहास का विषय बन चुकी हैं। उनका रहन-सहन, खान-पान और जीवन का रंग-ढ़ग पुराने रजवाड़ों के रंग-ढ़ग को मात कर रहा हैं। तब एक राज्य में राजा एक होता था अब राजाओं की फौज हैं। इसलिये स्थिति पुराने राजवाड़ों की अपेक्षा अधिक खराब होती जा रही हैं।  भ्रष्टाचार को दूर करने के लिये दो काम करने होंगे। उच्च पदों पर ऐसे लोगों को ही बिठाया जाये जिनका निजी और सार्वजनिक जीवन और छवि निर्मल हो। साथ ही शिक्षा का समावेश हो चाहिए। धर्म और पंथ अथवा मजहब दो अलग-अलग परिकल्पनाएं हैं। मजहबी शिक्षा जो भेदभाव और मार-काट सिखाती हैं का पूरी तरह निषेध होना चाहिए और धर्म शिक्षा जो नैतिकता, मानवता और सद्व्यवहार सिखाती हैं प्राथमिक कक्षाओं में अनिवार्य होनी चाहिए। ’सत्यम वद् धर्मम् चर’ हर स्कूल में प्रवेश पाने वाले के लिये प्रथम पाठ होना चाहिए।

11. सुराज्यः- भारत को 1947 में स्वराज्य तो मिला, परन्तु गत 52 वर्षों में यह सुराज्य नहीं बन सका। यह रामराज्य तो नहीं बन सका परन्तु इसके विपरित यह कुराज अथवा रावण राज्य बनता जा रहा हैं।   स्वराज्य को सुराज्य बनाने के लिये चरित्रवान नेताओं का होना अनिवार्य हैं। राजनेताओं के भ्रष्टाचार तथा सेकुलरवाद के नाम पर शिक्षा में से धर्म को निकालने के साथ-साथ हमारी आज की राज्य व्यवस्था भी राज्य के बिगड़ते स्वरूप और कुशासन का एक बड़ा कारण हैं। उसमें कुछ लोकतंत्र का प्रचलित स्वरूप हैं। एक ओर गरीब और अशिक्षित होने के कारण अनैतिक और कुर्सी के भूखे धनाढ्य और बदमाश राजनेताओं और उम्मीदवारों के हाथ में खेल जाते हैं। दूसरी ओर चुनाव हलकों का बहुत बड़ा होने और विधानसभा के हलकों में भी मतदाताओं की संख्या लाखों में होने के कारण भारतीय लोकतंत्र का रूप ही विकृत हो गया हैं।लोकतंत्र हमारे देश के लिये नया नहीं हैं। परन्तु इस का वर्तमान रूप नया हैं। अनुभव ने सिध्द कर दिया हैं कि यह हमारे अनुकूल नहीं। इस पर पुर्नविचार करना स्वराज्य को सुराज्य बनाने के लिये आवश्यक हैं।  ग्राम पंचायतों और जनपदों सभाओं को अधिक महत्व और शक्ति दी जानी चाहिए। बड़े राज्य का भूगोल, इतिहास, परम्परा, प्रशासनिक सुविधा और भाषा के आधार पर ऐसा पुर्नगठन किया जाना चाहिए कि किसी विधानसभा चुनाव क्षेत्र में 50 हजार से अधिक मतदाता न हों। लोक सभा की सदस्य संख्या बहुत नहीं बढ़ाई जा सकती। इसलिये इसके लिये चुनाव के ढंग पर पुर्नीवचार करना चाहिए।  तीसरे राज्य को धर्म अथवा नैतिकता के आधार पर चलाना चाहिए। राज्य पंथ या मजहब निरपेक्ष होना चाहिए। परन्तु धर्म निपेक्ष होना चाहिए। धर्म को मजहब के साथ गलत-मलत करके अंग्रेजों के मानस पुत्रों ने हिन्दुस्तान के राजतंत्र को गंदा और विकृत कर दिया हैं। धर्म विहीन राजा और राज्य सभी बुराईयों का स्त्रोत बन जाता हैं। सुराज्य के लिये चौथी आवश्यकता लोगों की भाषा बनाना हैं। हमारे प्रशासन पर अंग्रेजों के वर्चस्व ने इसे जनमानस और जनजीवन से काट डाला हैं। इसलिये हिन्दी को राष्ट्र भाषा हैं। यह भारत की सभी भाषाओं को जोड़ने वाली कड़ी हैं। इसे सर्वाधिक महत्व देने की आवश्यकता हैं।   संस्कृत भारत की अधिकांश क्षेत्रीय भाषाओं की जननी हैं। दक्षिण की चार भाषाओं-तमिल, तेलगु, कन्नड़ और मलयालाम पर भी संस्कृत का प्रभाव व्यापाक हैं। वे भी संस्कृतमयी हो चुकी हैं। इसलिये संस्कृत सही अर्थ में भारत की राष्ट्र भाषा हैं। यह भारत की सभी भाषाओं को जोड़ने वाली कड़ी हैं। इसे सर्वाधिक महत्व देने की आवश्यकता हैं।  हमारी सभी भाषाओं की वर्णमाला समान हैं परन्तु लिखने के ढ़ग में थोड़ा-थोड़ा अन्तर हैं। यदि सभी भाषाओं को लिखने के लिये देवानगरी लिपि जो संस्कृत की लिपि होने के कारण देश के सभी भागों में प्रचलित हैं को वैकल्पिक लिपि बना दिया जाये तो भाषाओं की अनेकता के बावजूद उनमें एकरूपता लाई जा सकती हैं और सभी भाषायें सारे देश में पढ़ी और समझी जा सकती हैं।  सभी राष्ट्रवादी संगठनों विशेष रूप में आर्य समाज, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद् तथा भारतीय जनसंघ, अजय भारत पार्टी, शिवसेना और हिन्दू महासभा के कार्यकताओं का राष्ट्रीय कर्तव्य हैं कि वे इस राष्ट्रवादी एजेंडा को सभी मतदाताओं तक पहुंचाने और इसमें दी गई विचारधारा के साथ प्रतिबध्द उम्मीदवारों को ही अपना मत देने को कहें।

बलराज मधोक – 

अध्यक्ष आर्य राष्ट्रीय मंच, राष्ट्रवादी मंच

संस्थापक सदस्य व पूर्व अध्यक्ष भारतीय जनसंघ

जे-394, शंकर मार्ग, नई दिल्ली- 110 060